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नवनीतं चाभिमन्त्र्य स्त्रीणां सद्यान् महेश्वरि।

ॐ भ्रामरी स्तम्भिनी देवी क्षोभिणी मोहिनी तथा ।

कौमारी पश्चिमे पातु वायव्ये चापराजिता।। (१३)

maṃtra : om pratyaṃgirāyai namaḥ pratyaṃgire sakala kāmān sādhaya: mama rakṣāṃ kurū kurū sarvāna śatrun khādaya-khādaya, māraya-māraya, ghātaya-ghātaya oṃ hrīṃ phaṭ svāhā।

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तत्‌ तत्‌ काममवाप्नोति सप्तरात्रेण शंकरि।

पातु गण्डौ सदा मामैश्वर्याण्यन्तं तु मस्तकम्।। (२)

ब्राह्मी पूर्वदले पातु चाग्नेय्यां विष्णुवल्लभा॥ १२ ॥

रक्षां करोतु सर्वत्र गृहेऽरण्ये सदा मम॥ ५ ॥

Therefore finishes the śrī bagalā pratyaṅgirā kavacam, from your sacred rudrayāmala tantra, consisting with the conversation among śiva and śakti.

श्मशाने च भयं नास्ति कवचस्य प्रभावतः।। (२६)

यद्यपि बगलामुखी कवच के साथ इसकी फलश्रुति का पाठ अनिवार्य नहीं है, फिर भी इसे पढ़ने का विशेष महत्व है–

प्रत्येक प्राणी स्वयं को अभिव्यक्त करना चाहता है। परिदृश्यमान जगत वस्तुत: मनुष्य की more info आत्माभिव्यक्ति का ही एक साधन मात्र है और इस आत्माभिव्यक्ति के लिए निजभाषा से श्रेष्ठ अन्य कोई माध्यम नहीं हो सकता। इसलिये यह वेबसाइट निजभाषा और विभिन्न मुद्दों पर स्पष्ट वैचारिक अभिव्यक्ति को समर्पित है।

ब्रह्मास्त्राख्य मनुं विलिख्य नितरां भूर्जेष्टगन्धेन वै,

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